शनिवार

दोस्ती क्या है ?


एक लड़की थी जो अंधी थी .जिस वजह से उससे कोई दोस्ती नहीं करता था ,लकिन एक
लड़का था जो उसका दोस्त था और हर मोड़ पर साथ देता था. उसको कभी महसूस
नहीं होने देता था कि वो अंधी है .इस वजह से लड़की बहुत खुश रहती थी ,एक
दिन लड़की ने कहा अगर मैं देख सकती तो तुमसे शादी कर लेती .
कुछ दिनों
के बाद किसी ने उस लड़की को अपनी ऑंखें दान कर दी और लड़की देखने लगी .तब
उस लड़की ने देखा कि वो लड़का जो उसका साथ देता था वो अँधा है .फिर उस
लड़के ने उस लड़की से पूछा कि क्या अब तुम मुझसे शादी करोगी तो लड़की ने
कहा "नहीं, मैं तुमसे शादी नहीं करुँगी" .
इस पर वो लड़का मुस्कुराया और
उस लड़की के हाथ मैं एक कागज देकर हमेशा-हमेशा के लिए उससे दूर चला गया

बुधवार

सावन बहुत भाने लगा है



अब तुम्हे सावन बहुत भाने लगा है,


कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.


यादों का दामन छुडाने सा लगा है,

कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.

सुन रहा था सब चमन,चुपचाप जब तुम,

बात कुछ बैठे सुमन से कर रहे थे.

तुम किसी के ध्यान में होकर मगन यूं,

फूल आंखों से उठाकर छू रहे थे.

अब तुम्हे कुछ क्रोध भी आने लगा है,

कोई कहता था ,न जाने रात मुज्ह्से.

बिजलियों की यह शिकायत हो रही है,

बादलों कों तुम बुलाने लग गये हो.

एक हलचल सी पतंगों मे मची है,

तुम बहुत दीपक जलाने लग गये हो.

अब तुम्हारा मन विहग गाने लगा है,

कोई कहता था ,न जाने रात मुज्ह्से.

दूर बजती बांसुरी की रागिनी भी,

उस तरह तुमसे सुनी जाती नही है.

अब तुम्हारी जिन्दगी की नर्म चादर,

आज खुशियों से बुनी जाती नही है.

अब तुम्हारा मौन घबराने लगा है,

कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.

रोज भर भर कर उमंगों के घडे यूं,

तुम अजाने रास्ते यूं तोड देते.

एक कोई है कि जिसका ध्यान करके,

गांठ आंचल में लगा कर जोड लेते.

अब तुम्हे संसार समज्हाने लगा है,

कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.

अब तुम्हे सावन बहुत भाने लगा है,

कोई कहता थ ,न जाने रात मुज्ह्से.

अब तुम्हारा मौन घबराने लगा है,

कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.

रोज भर भर कर उमंगों के घडे यूं,

तुम अजाने रास्ते यूं तोड देते.

एक कोई है कि जिसका ध्यान करके,

गांठ आंचल में लगा कर जोड लेते.

अब तुम्हे संसार समज्हाने लगा है,

कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.

अब तुम्हे सावन बहुत भाने लगा है,

कोई कहता थ ,न जाने रात मुज्ह्से.

सोमवार

कैसे कैसे उत्पाद

एक जगह बहुत भीड़ लगी थी

एक आदमी चिल्ला रहा था

कुछ बेचा जा रहा था

आवाज कुछ इस तरह आई

शरीर में स्फुर्ति न होने से परेशान हो भाई

थकान से टूटता है बदन

काम करने में नहीं लगता है मन

खुद से ही झुंझलाए हो

या किसी से लड़कर आए हो

तो हमारे पास है ये दवा

सभी परेशानियां कर देती है हवा

मैंने भीड़ को हटाया

सही जगह पर आया

मैंने कहा इतनी कीमती चीज

कहीं मंहगी तो नहीं है

वो बोला आपने भी ये क्या बात कही है

इतने सारे गुण सिर्फ दो रुपए में लीजिए

भाई साब दिलदार बीड़ी पीजिए

by arun mittal

रविवार

मेरा हिन्दुस्तां


जहाँ हर चीज है प्यारी
सभी चाहत के पुजारी
प्यारी जिसकी ज़बां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहाँ ग़ालिब की ग़ज़ल है
वो प्यारा ताज महल है
प्यार का एक निशां
वही है मेरा हिन्दुस्ता

जहाँ फूलों का बिस्तर है
जहाँ अम्बर की चादर है
नजर तक फैला सागर है
सुहाना हर इक मंजर है
वो झरने और हवाएँ,
सभी मिल जुल कर गायें
प्यार का गीत जहां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहां सूरज की थाली है
जहां चंदा की प्याली है
फिजा भी क्या दिलवाली है
कभी होली तो दिवाली है
वो बिंदिया चुनरी पायल
वो साडी मेहंदी काजल
रंगीला है समां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

कही पे नदियाँ बलखाएं
कहीं पे पंछी इतरायें
बसंती झूले लहराएं
जहां अन्गिन्त हैं भाषाएं
सुबह जैसे ही चमकी
बजी मंदिर में घंटी
और मस्जिद में अजां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

कहीं गलियों में भंगड़ा है
कही ठेले में रगडा है
हजारों किस्में आमों की
ये चौसा तो वो लंगडा है
लो फिर स्वतंत्र दिवस आया
तिरंगा सबने लहराया
लेकर फिरे यहाँ-वहां
वहीँ है मेरा हिन्दुस्तां

by vikas gupta