शनिवार


बात उन दिनों की है जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ पर राज्य करते थे। राजा होने के नाते वे काफी दान-पुण्य भी करते थे। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि दानवीर के रूप में फैलने लगी और पांडवों को इसका अभिमान होने लगा। कहते हैं कि भगवान दर्पहारी होते हैं। अपने भक्तों का अभिमान, तो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं। एक बार श्रीकृष्ण इंद्रप्रस्थ पहुंचे। भीम व अजरुन ने उनके सामने युधिष्ठिर की प्रशंसा शुरू की। दोनों ने बताया कि वे कितने बड़े दानी हैं।

तब कृष्ण ने उन्हें बीच में ही टोक दिया और कहा, ‘लेकिन हमने कर्ण जैसा दानवीर और नहीं सुना।’ पांडवों को यह बात पसंद नहीं आई। भीम ने पूछ ही लिया, ‘भला वो कैसे?’ कृष्ण ने कहा कि ‘समय आने पर बतलाऊंगा।’ बात आई-गई हो गई। कुछ ही दिनों में सावन शुरू हो गए व वर्षा की झड़ी लग गई। उस समय एक याचक युधिष्ठिर के पास आया और बोला, ‘महाराज! मैं आपके राज्य में रहने वाला एक ब्राह्मण हूं।

आज मेरा व्रत है और हवन किए बिना मैं कुछ भी नहीं खाता-पीता। कई दिनों से मेरे पास यज्ञ के लिए चंदन की लकड़ी नहीं है। यदि आपके पास हो तो, कृपा कर मुझे दे दें। अन्यथा मैं हवन पूरा नहीं कर पाऊंगा और भूखा-प्यासा मर जाऊंगा।’ युधिष्ठिर ने तुरंत कोषागार के कर्मचारी को बुलवाया और कोष से चंदन की लकड़ी देने का आदेश दिया।

संयोग से कोषागार में सूखी लकड़ी नहीं थी। तब महाराज ने भीम व अजरुन को चंदन की लकड़ी का प्रबंध करने का आदेश दिया। लेकिन काफी दौड़-धूप के बाद भी सूखी लकड़ी की व्यवस्था नहीं हो पाई। तब ब्राह्मण को हताश होते देख कृष्ण ने कहा, ‘मेरे अनुमान से एक स्थान पर आपको लकड़ी मिल सकती है, आइए मेरे साथ।’ ब्राह्मण की आखों में चमक आ गई।

भगवान ने अजरुन व भीम को भी इशारा किया, वेष बदलकर वे भी ब्राह्मण के संग हो लिए। कृष्ण सबको लेकर कर्ण के महल में गए। सभी ब्राह्मणों के वेष में थे, अत: कर्ण ने उन्हें पहचाना नहीं। याचक ब्राह्मण ने जाकर लकड़ी की अपनी वही मांग दोहराई। कर्ण ने भी अपने भंडार के मुखिया को बुलवाकर सूखी लकड़ी देने के लिए कहा, वहां भी वही उत्तर प्राप्त हुआ।

ब्राह्मण निराश हो गया। अजरुन-भीम प्रश्न-सूचक निगाहों से भगवान को ताकने लगे। लेकिन वे अपनी चिर-परिचित मुस्कान लिए बैठे रहे। तभी कर्ण ने कहा, ‘हे देवता! आप निराश न हों, एक उपाय है मेरे पास।’ देखते ही देखते कर्ण ने अपने महल के खिड़की-दरवाज़ों में लगी चंदन की लकड़ी काट-काट कर ढेर लगा दी, फिर ब्राह्मण से कहा, ‘आपको जितनी लकड़ी चाहिए, कृपया ले जाइए।’ कर्ण ने लकड़ी पहुंचाने के लिए ब्राह्मण के साथ अपना सेवक भी भेज दिया। ब्राह्मण लकड़ी लेकर कर्ण को आशीर्वाद देता हुआ लौट गया। पांडव व श्रीकृष्ण भी लौट आए।

वापस आकर भगवान ने कहा, ‘साधारण अवस्था में दान देना कोई विशेषता नहीं है, असाधारण परिस्थिति में किसी के लिए अपने सर्वस्व को त्याग देने का ही नाम दान है। अन्यथा चंदन की लकड़ी के खिड़की-द्वार तो आपके महल में भी थे।’ इस कहानी का तात्पर्य यह है कि हमें ऐसे कार्य करने चाहिए कि हम उस स्थिति तक पहुंच जाएं जहां पर स्वाभाविक रूप से जीव भगवान की सेवा करता है।

हमें भगवान को देखने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपने को ऐसे कार्यो में संलग्न करना चाहिए कि भगवान स्वयं हमें देखें। केवल एक गुण या एक कार्य में अगर हम पूरी निष्ठा से अपने को लगा दें, तो कोई कारण नहीं कि भगवान हम पर प्रसन्न न हों। कर्ण ने कोई विशेष कार्य नहीं किया, किंतु उसने अपना यह नियम भंग नहीं होने दिया कि उसके द्वार से कोई निराश नहीं लौटेगा।

गुरुवार

काले-काले बादल

बड़े निराले बादल
काले-काले बादल.

सूरज तो शरमीला
बरखा पाले बादल.

बरसात में बूंद के
सिक्के ढाले
बादल.
बच्चों को नहलाने
पानी डाले बादल.

ककड़ी-भूट्टे लाएं
पानी वाले बादल.

स्कूल में लगवाते
अक्सर ताले बादल.
कहने को काले हैं
देते उजाले बादल.



डॉ रफीक नागौरी - उज्जैन, मध्यप्रदेश
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अयोध्या का इतिहास और स्वामित्व

लखनऊ। अयोध्या में विवादित जमीन के स्वामित्व संबंधी मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गुरुवार को बहुमत से फैसला दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल को तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला पक्ष को बराबर बांटा जाए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का दीवानी दावा खारिज करते हुए कहा कि विवादित स्थल पर रामलला की पूजा जारी रहेगी। तीनों न्यायमूर्तियों एसयू खान, सुधीर अग्रवाल और डीवी शर्मा ने दिए अलग-अलग फैसले दिए, लेकिन पूजा जारी रखने पर तीनों एकमत का एक है। वकीलों ने यह जानकारी दी।

न्यायमूर्ति डीवी शर्मा ने मालिकाना हक संबंधी मामले का फैसला हिंदुओं के हक में सुनाया। राम लला पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील केएन भट्ट ने यह जानकारी दी। वकीलों रवि शंकर प्रसाद और केएन भट्ट ने दावा किया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर तीन महीने तक यथास्थिति बहाल रखी जाएगी। वकीलों के अनुसार न्यायमूर्ति एसयू खान ने व्यवस्था दी कि विवादित भूमि दोनों समुदायों की है।

अयोध्या विवाद संबंधी इतिहास और घटनाक्रम:-

अयोध्या में विवादित भूमि का मुद्दा दशकों से एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है और इसे लेकर विभिन्न हिंदू एवं मुस्लिम संगठनों ने तमाम कानूनी वाद दायर कर रखे हैं। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर इतिहास एवं घटनाक्रम इस प्रकार है।

-1528: मुगल बादशाह बाबर ने उस भूमि पर एक मस्जिद बनवाई जिसके बारे हिंदुओं का दावा है कि वह भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां पहले एक मंदिर था।

-1853: विवादित भूमि पर सांप्रदायिक हिंसा संबंधी घटनाओं का दस्तावेजों में दर्ज पहला प्रमाण।

-1859: ब्रिटिश अधिकारियों ने एक बाड़ बनाकर पूजास्थलों को अलग-अलग किया। अंदरुनी हिस्सा मुस्लिमों को दिया गया और बाहरी हिस्सा हिंदुओं को।

-1885: महंत रघुवीर दास ने एक याचिका दायर कर रामचबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।

-1949: मस्जिद के भीतर भगवान राम की प्रतिमाओं का प्राकट्य। मुस्लिमों का दावा कि हिंदुओं ने प्रतिमाएं भीतर रखवाई। मुस्लिमों का विरोध। दोनों पक्षों ने दीवानी याचिकाएं दायर की। सरकार ने परिसर को विवादित क्षेत्र घोषित किया और द्वार बंद कर दिए।

-18 जनवरी 1950: मालिकाना हक के बारे में पहला वाद गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया। उन्होंने मांग की कि जन्मभूमि में स्थापित प्रतिमाओं की पूजा का अधिकार दिया जाए। अदालत ने प्रतिमाओं को हटाने पर रोक लगाई और पूजा जारी रखने की अनुमति दी।

-24 अपै्रल 1950: उप्र राज्य ने लगाई रोक। रोक के खिलाफ अपील।

-1950: रामचन्द्र परमहंस ने एक अन्य वाद दायर किया लेकिन बाद में वापस ले लिया।

-1959: निर्मोही अखाड़ा भी विवाद में शामिल हो गया तथा तीसरा वाद दायर किया। उसने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाया जाए। उसने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।

-18 दिसंबर 1961: उप्र सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड आफ वक्फ भी विवाद में शामिल हुआ। उसने मस्जिद और आसपास की भूमि पर अपने स्वामित्व का दावा किया।

-1986: जिला न्यायाधीश ने हरिशंकर दुबे की याचिका पर मस्जिद के फाटक खोलने और 'दर्शन' की अनुमति प्रदान की। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।

-1989: विहिप के उपाध्यक्ष देवकी नंदन अग्रवाल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में एक ताजा याचिका दायर करते हुए मालिकाना हक और स्वामित्व भगवान राम के नाम पर घोषित करने का अनुरोध किया।

-23 अक्टूबर 1989: फैजाबाद में विचाराधीन सभी चारों वादों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की विशेष पीठ में स्थानांतरित किया गया।

-1989: विहिप ने विवादित मस्जिद के समीप की भूमि पर राममंदिर का शिलान्यास किया।

-1990: विहिप के स्वयंसेवकों ने मस्जिद को आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के जरिए विवाद का हल निकालने का प्रयास किया।

-छह दिसंबर 1992: विवादित मस्जिद को विहिप, शिवसेना और भाजपा के समर्थन में हिंदू स्वयंसेवकों ने ढहाया। इसके चलते देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें 2000 से अधिक लोगों की जान गई।

-16 दिसंबर 1992: विवादित ढांचे को ढहाए जाने की जांच के लिए न्यायमूर्ति लिब्रहान आयोग का गठन। छह माह के भीतर जांच खत्म करने को कहा गया।

-जुलाई 1996: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी दीवानी वादों पर एकसाथ सुनवाई करवाने को कहा।

-2002: हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से खुदाई कर यह पता लगाने को कहा कि क्या विवादित भूमि के नीचे कोई मंदिर था।

-अपै्रल 2002: हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों ने सुनवाई शुरू की।

-जनवरी 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अदालत के आदेश पर खुदाई शुरू की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वहां भगवान राम का मंदिर था।

-अगस्त 2003: सर्वेक्षण में कहा गया कि मस्जिद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण। मुस्लिमों ने निष्कर्षो से मतभेद जताया।

-जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकी ने विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आदमियों को मारा।

-जून 2009: लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बीच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।

-26 जुलाई 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वादों पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। फैसला सुनाने की तारीख 24 सितंबर तय की।

-17 सितंबर 2010: हाईकोर्ट ने एक पक्ष रमेश चंद्र त्रिपाठी के अनुरोध को खारिज करते हुए अपना फैसला सुनाने की तिथि टालने से किया इनकार।

-21 सितंबर 2010: त्रिपाठी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने मामले पर सुनवाई से किया इनकार। मामले को अन्य पीठ के पास भेजा गया।

-23 सितंबर 2010: याचिका पर सुनवाई किए जाने के मामले में न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन और न्यायमूर्ति एच एल गोखले ने दी अलग-अलग राय। कोर्ट ने पक्षों को नोटिस जारी किए।

-28 सितंबर 2010: सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट को फैसला सुनाने की तिथि टालने का निर्देश देने से इकार। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाने की तिथि 30 सितंबर तय की।

-30 सितंबर 2010 इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया।



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