अब तुम्हे सावन बहुत भाने लगा है,
कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.
यादों का दामन छुडाने सा लगा है,
कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.
सुन रहा था सब चमन,चुपचाप जब तुम,
बात कुछ बैठे सुमन से कर रहे थे.
तुम किसी के ध्यान में होकर मगन यूं,
फूल आंखों से उठाकर छू रहे थे.
अब तुम्हे कुछ क्रोध भी आने लगा है,
कोई कहता था ,न जाने रात मुज्ह्से.
बिजलियों की यह शिकायत हो रही है,
बादलों कों तुम बुलाने लग गये हो.
एक हलचल सी पतंगों मे मची है,
तुम बहुत दीपक जलाने लग गये हो.
अब तुम्हारा मन विहग गाने लगा है,
कोई कहता था ,न जाने रात मुज्ह्से.
दूर बजती बांसुरी की रागिनी भी,
उस तरह तुमसे सुनी जाती नही है.
अब तुम्हारी जिन्दगी की नर्म चादर,
आज खुशियों से बुनी जाती नही है.
अब तुम्हारा मौन घबराने लगा है,
कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.
रोज भर भर कर उमंगों के घडे यूं,
तुम अजाने रास्ते यूं तोड देते.
एक कोई है कि जिसका ध्यान करके,
गांठ आंचल में लगा कर जोड लेते.
अब तुम्हे संसार समज्हाने लगा है,
कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.
अब तुम्हे सावन बहुत भाने लगा है,
कोई कहता थ ,न जाने रात मुज्ह्से.
अब तुम्हारा मौन घबराने लगा है,
कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.
रोज भर भर कर उमंगों के घडे यूं,
तुम अजाने रास्ते यूं तोड देते.
एक कोई है कि जिसका ध्यान करके,
गांठ आंचल में लगा कर जोड लेते.
अब तुम्हे संसार समज्हाने लगा है,
कोई कहता था,न जाने रात मुज्ह्से.
अब तुम्हे सावन बहुत भाने लगा है,
कोई कहता थ ,न जाने रात मुज्ह्से.
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