रविवार

प्रेम कथा,


प्रेम के इस वसंती मौसम में
कोई लिख रहा है प्रेम कथा।

गुनगुनी धूप जैसे गुजरती है देह के आरपार
बहती है संबंधों की एक उन्मुक्त नदी,
जो शब्दों की परिधि नहीं मानती
मौन-सा कुछ-कुछ पनपता है
देह नहीं, आत्मा तक उतर जाता है कुछ।

अंजलि-भर सुख सभी चाहते हैं
उदासियों में भी छिपा होता है
स्मृतियों का सुख,
हवा में उड़ कर आई हंसी
गंध का कटोरा भर कर लाती है
नीले आसमान से टपकता है
एहसास का अमृत
बावरा मन कभी जीता है कभी मरता है।

प्रेम की राह होती है सपनों सरीखी
और हर कोई
सपनों को सजोकर रखना चाहता है,
थके हुए सपनों को
भावनाओं की परी
प्रेमानुभूति की लोरी सुनाती है।

प्रेम के इस वसंती मौसम में
कोई लिख रहा है प्रेम कथा,
जैसे मंदिर की देहरी पर
जल रहा हो एक मौन दीपक!

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