शुक्रवार

कोई बुड्ढा बारात मैं नहीं जायेगा !

सुनो सुनाता हूँ एक कहानी मुझको मेरे दादा कहते थे !
एक गाँव मैं सज्जनसिंह और दुर्जनसिंह दो दुश्मन रहते थे !
एक दूजे को दोनों फूटी आँख नहीं सुहाते थे !
एक दूजे के सामने पड़कर दोनों ही गुर्राते थे !
सज्जनसिंह का बेटा प्रेम उसकी आँख का तारा था !
बेटा उसका सबका प्यारा सबका राज दुलारा था !
दुर्जनसिंह की बेटी डिम्पल उसकी राजकुमारी थी !
सारी दुनिया इस अप्सरा के रूप-रंग पर बारी थी !
पता नहीं दोनों की ऑंखें आपस मैं कब मिल गई !
दोनों के दिल मैं प्यार की कलियाँ कब खिल गई !
लोग कहते हैं कितना ही छुपाओ प्यार छुपता नहीं !
दोनों ने मिलकर पिक्चर देखी प्यार झुकता नहीं !
फिल्म देखकर दोनों ने ठाना हम भी झुकेंगे नहीं !
हम दो प्रेमी प्यार के पंछी कहीं भी रुकेंगे नहीं !
सज्जन सिंह बोला बेटा तूने सही लड़की को पटाया है !
मेरा जानी दुश्मन दुर्जनसिंह अब मेरे बस मैं आया है !
मैं कल ही तेरा रिश्ता लेकर दुश्मन के घर जाऊंगा !
उस जिद्दी-हठी दुर्जनसिंह को अपने आगे झुकाउंगा !
वहां दुर्जनसिंह ने डिम्पल को अपने पास बुलाया !
बड़े प्यार से बेटी डिम्पल को बहलाया -फुसलाया !
मगर प्रेम के प्रेम मैं मग्न डिम्पल को न मना पाया !
डिम्पल ने कहा शादी न हुई तो अपने प्राण दे दूँगी !
किसी दरिया मैं डूबकर अपनी जान दे दूँगी !
अपनी जिद से राजकुमारी डिम्पल ने हाँ करवाई !
यहाँ दुर्जनसिंह को शादी रुकवाने की एक तरकीब आई !
अगले दिन सज्जनसिंह प्रेम का रिश्ता लेकर दुश्मन के घर आया !
दुर्जनसिंह ने भारी मन से दुश्मन को अपने स्वागत कक्ष मैं बिठाया !
दुर्जनसिंह बोला मुझे अपनी बेटी की ख़ुशी की खातिर ये रस्म निभानी पड़ेगी !
मगर सज्जनसिंह तुम्हारे बेटे को शादी के लिए हमारी कुछ शर्तें माननी पड़ेंगी !
सज्जनसिंह बोला अपने प्यार के लिए मेरा बेटा सारी शर्तें निभाएगा !
दुर्जनसिंह मेरा बेटा दिलवाला है तुम्हारे घर से दुल्हनिया ले जायेगा !
दुर्जनसिंह बोला तुम्हारा बेटा मेरी पहली ये शर्त निभाएगा !
सारे बाराती जवान होंगे कोई बुड्ढा बारात मैं नहीं आएगा !
यदि कोई बुड्ढा बारात मैं आया तो मैं हालत का रुख मोड़ दूंगा !
यदि मेरी कोई भी शर्त तोड़ी तो मैं ये शादी उसी वक़्त तोड़ दूंगा !
सज्जनसिंह बोला मेरे बेटे के दिल मैं डिम्पल के लिए सच्चा प्यार है !
और अपने सच्चे प्यार के लिए मेरा बेटा हर शर्त मानने को तैयार है !
लेकिन बारात बाले दिन प्रेम के दादा मर्दनसिंह जिद पकड़ गए !
और पोते की बारात मैं जाने के लिए पहाड़ की तरह अड़ गए !
प्रेम बोला दादाजी मान जाओ क्या मेरे उलटे फेरे पदवाओगे !
दुर्जनसिंह ने आपको देख लिया तो आप मेरी शादी तुडवाओगे !
मर्दनसिंह बोला बेटा कोई गहरी चाल चलके वो तुम्हारी शादी रुकवाएगा !
मगर ऐसे मैं तुम्हारे बुड्ढे दादाजी का अनुभव तुम्हारे बड़े काम आयेगा !
और तुम फिक्र न करो वो शातिर दुर्जनसिंह मुझे कभी नहीं देख पायेगा !
क्योंकि तुम्हारा दादा मर्दनसिंह सामने नहीं एक बक्से मैं छुपकर जायेगा !
खैर बारात मैं शर्तानुसार १०० एक दम जवान बाराती पहुँच गए !
और लोहे के बक्से मैं बूढ़े दादाजी मर्दनसिंह भी पहुँच गए !
इधर दरवाज़े पर बारात देखकर दुर्जनसिंह ने शैतानी जुगत लगाई !
शादी रुकवाने के लिए उसके दिमाग मैं एक शैतानी तरकीब आई !
तरकीब आते ही उसने शादी करने के लिए अपनी दूसरी शर्त बताई !
दुर्जनसिंह बोला मेरी दूसरी शर्तानुसार ये विवाह तभी हो पायेगा !
जब हर एक बाराती खाने मैं पूरा एक बकरा अकेले ही खायेगा !
यदि एक भी बाराती की थाली मैं जरा सा भी बकरा छूट जायेगा !
तो समझ लो प्रेम और डिम्पल का ये विवाह वहीँ टूट जायेगा !
दुर्जनसिंह की शर्त सुनकर जवान बारातियों मैं हलचल मच गई !
दुर्जनसिंह को लगा शादी रुकवाने की ये तरकीब काम कर गई !
प्रेम ने कहा हमें थोडा वक़्त दो हम सोच कर आपको बताते हैं !
हमें सोचना होगा की हम आपकी ये शर्त कैसे पूरी कर पाते हैं !
दुर्जनसिंह की ये शर्त बारातियों मैं खलबली मचाने लगी !
प्रेम के प्रेम की नैय्या भंवर मैं गुडगुड गोते खाने लगी !
बंद कमरे मैं जवानों मैं हलचल मची थी ये शर्त कैसे पूरी हो पायेगी !
शर्त पूरी न हुई तो प्रेम की नैय्या राम के भरोसे कैसे पार हो पायेगी!
तभी बक्से मैं बंद दादाजी की आवाज़ आई अबे मुझे कोई बहार निकालो!
आखिर क्यों इतने बैचेन हो जरा मेरे सामने पूरे माजरे पर प्रकाश डालो !
जवानों ने बुड्ढे मर्दनसिंह को डरते-डरते बहार निकाला !
और बताया दादा को कि दुर्जन ने क्या षड़यंत्र रच डाला !
बुड्ढे दादाजी बोले आज दुर्जनसिंह के कोई षड़यंत्र काम न आयेंगे !
आये हम बाराती बारात लेकर तो दुल्हन कि डोली लेकर ही जायेंगे !
सुनो जवानों अब मैं तुम्हे अपने अनुभव का कमाल दिखाता हूँ !
दुर्जनसिंह कि शैतानी चाल का तोड़ तुम सबको बताता हूँ !
दादा मर्दनसिंह ने पोते प्रेम कान मैं ज्यों ही अपनी तरकीब बताई !
प्रेम कि गुडगुड गोते खाती नैय्या को फिर से माझी मिल गया भाई !
प्रेम ने दुर्जनसिंह से कहा हमारा हर बाराती खाने मैं एक बकरा खायेगा !
मगर शर्त ये है कि एक बार मैं १०० बारातियों को एक बकरा परसा जायेगा !
खाना शुरू हुआ शर्तानुसार एक बार मैं एक बकरा पकाया जाता था !
और १०० बारातियों के बीच मैं सबको एक -एक टुकड़ा मिल पाता था !
जब तक दुर्जनसिंह का दूसरा बकरा कढाई मैं पक पाता था !
तब तक बरातियो का पहला टुकड़ा आसानी से पच जाता था !
देखते ही दुर्जनसिंह के हलवाई पूरे १०० बकरे पका गए !
और मर्दनसिंह के १०० बाराती पूरे १०० बकरे पचा गए !
दुर्जनसिंह कि शादी रुकवाने कि ये आखिरी तरकीब भी बेकार हो गई !
दादा मर्दनसिंह के अनुभव से पोते प्रेम और डिम्पल कि नैय्या पार हो गई !
किसी ने सच ही कहा है जवानी का जोश हर जगह काम नहीं आता है !
बुड्ढे हर जगह जरुरी हैं , बुड्ढों का जिन्दगी भर का अनुभव काम आता है !

1 टिप्पणी:

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