भक्ति, शक्ति और हिंदुत्व के साथ जो जिंदगी की यात्रा मैने जी है और जिस प्रकार जीने का अनुमान है, उस भूत और भविष्य को लेखनी के माध्यम से संवादित करने की चेष्ठा करूंगा। सामान्यता हर जीव की यात्रा में सुख दुःख धूप छांव की तरह आते रहते हैं, परंतु इस यात्रा की इस धूप छांव को अपने सहयात्रियों से साझा करने पर इसे मज़ेदार और प्रसन्नचित बनाया जा सकता है। इसलिए आइए, मैं अपने विचार रखता हूं, आप अपने विचार व्यक्त कीजिए।
बुधवार
जाना भी जरुरी है
वो कह के चले इतनी मुलाक़ात बहुत हे
मैं ने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत हे,
आँसू मेरे थम जायें तो फिर शौक़ से जाना
ऐसे मे कहाँ जाओगे बरसात बहुत हे ,
वो कह ने लगे जाना मेरा बहुत ज़रोरी हे
नही चाहती दिल तोड़ना तेरा पर मजबूरी बहुत हे,
अगर हुई हो कोई ख़ता तो माफ़ कर देना
मैं ने कहा हो जाओ चुप इतनी कही बात बहुत हे,
समझ गया हूँ सब और कुछ कहो ज़रूरी नही
बस आज की रात रुक जाओ, जाना इतना भी ज़रूरी नही,
फिर कभी ना आओंगा तुम्हारी ज़िंदगी में लौट के
सारी ज़िंदगी तन्हाई के लिए आज की रात बहुत हे......!!!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें