aircraft लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
aircraft लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार

बॉम्बे हाई : मेरा यात्रा वृतांत

बोम्बे हाई नाम से कुछ समझ नहीं आता कुछ अटपटा सा लगता है | फिर भी जो लोग थोडा-बहुत ज्ञान रखते  है उनको पता होगा ही की बोम्बे हाई से तेल व् गैस निकलती है जो समुन्द्र में भारत से कोसो दूर है| कुछ दिन पहले मुझे यहाँ आने का सोभाग्य (पता नहीं सौभाग्य या दुर्भाग्य) प्राप्त हुआ | यहाँ काफी प्लेटफोर्म बने हैं जो गैस व् तेल निकालने और निथारने का काम करते हैं| यहाँ पर मुख्यत: ONGC के लोग काम करते हैं ,कहा जाये की राज करते हैं | इसके अतिरिक्त लगभग इनसे दुगने लोग यहाँ CONTRACT के रूप में काम करते हैं| चलो जैसा भी यहाँ अच्छा काम चल रहा है हर कोई अपने काम में लीन रहता है|
जब मुंबई छोड क्रर हैलिकोपटर में बैठा तब लग रहा था की पीछे काफी कुछ छोड कर जा रहा हूँ | पर खुशी यह भी थी की नई जगह नए लोग मिलेंगे .नई बातों का पता चलेगा वगरह-२ | उड़न खटोले से आनंद लेते हुये पता ही नहीं चला की एक घंटा कब बीत गया | उपर निचे, दायें-बायं घूमते हुए, इतनी घनी  मुंबई को इतना छोटा देखते हुये मैं भूल चूका था की मैं यहाँ क्यों और कहाँ से आया हूँ | मैं बस खो गया था | हालाँकि यह मेरी पहली हवाई यात्रा नहीं थी किन्तु एक शीशे से बने गुब्बारे में मैं पहली बार उड़ रहा था |
मंजिल आ गई | मैंने उतर क्रर देखा की चारों तरफ नमकीन पानी ही पानी था और मैं खड़ा हूँ एक पाइपों के ढांचे पर | बड़े -२ पाइप समुन्द्र की छाती चिरते हुये मानो आर-पार निकल गए हों | मानवीय क्रला के इस अद्भुत संगम ने एक ऐसा रूप ले रखा था जिस पर हजारों कर्मियों के हजारों नित्यकर्म होते थे | इन्ही पाइपों की जोड़ घटा पर फडफडा क्र उड़ने वाला रोबोट आ-जा सकता था | यहाँ पर हर वस्तु उच्च दक्षता को बयाँ कर रही थी |
उस समुन्द्र की एवरेस्ट से हम धीरे-२ नीचे उतरने लगे | वहाँ सब कुछ ध्यान से करने का था थोडा ध्यान हटा तो जय राम जी की | सीढियों से नीचे उतर कर  २-३ लाल रंग के दरवाजों में से एक में घुसे तो वहाँ रहने के छोटे किन्तु अच्छे कमरे थे | धीरे-२ हम आगे बढते रहे तो इनकी रोनाक भी कम होने लगी | आख़िरकार एक स्टोर जैसे दिखने वाले कमरे को हमारे रहने का उपयुक्त स्थान बताया गया | इनमे ४ से ६ आदमी रहते थे एक फोन, एक कुर्सी , एक मेज, दो अल्मारी और बाकि ४-५ पानी से भरी कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें | घुसते ही उपस्थित लोगों ने स्वागतम् की भीनी भीनी मुस्कान छोड़ी | मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं साथ में रहने वाले लोग तो अच्छे हैं | इनके साथ कमरे का नक्सा भूल जाऊंगा | पर ये क्या ? पांच मिनट में सब उमीदों पर पानी फिर गया | सभी के सभी मलयाली बोलने वाले | इशारों-२ में टूटी-फूटी अंग्रेजी से पता चला की इस बिग बॉस के घर में तो बिना लिपस्टिक वाली मुस्कान से ही काम चलाना पडेगा | (NO HINDI ,NO ENGLISH) | शायद २०-२५ दिनों में मुझे भी एस कूड-कूड का ज्ञान हो जाय  या फिर सिर्फ मैं अपने शुरुवाती पूर्वजों की भाषा (इशारे की भाषा) ही याद रख पाउंगा |
परन्तु ये दिन मेरे जीवन के शायद सबसे शांति भरे दिन थे | अधिकतर मैं अकेला ही रहता था | मेरे पास कुछ न करने के लिए बहुत समय था | मैं अपना एकांत टेलीफोन से समाप्त कर सकता था पर मुंबई से सौ योजन दूर सभी की "पहुंचे हर जगह " वाली फिलोश्पी फीकी पड जाती थी | यहाँ सिर्फ एक ही फोन है ,जिससे आप अपने शुभचिंतको को दिलासा दे सकते हैं | समुन्द्र की इतनी गहराई में होने बाद भी यहाँ किसी चीज की कोइ कमी नहीं थी | खाने के लिए सभी चीजे जो भी चाहें सभी चीजें मिल सकती थी ,परन्तु पीने के लिए यहाँ कोल्ड ड्रिंक्स व् जूस ही मिलते थे | मदिरा सेवन यहाँ पूर्णतया प्रतिबद्ध था | सब कुछ मिलाकर देखे तो यहाँ मन को संत्वना देने के लिए हर चीज का प्रबंध किया गया था |
इन २०-२५ दिनों में हालाँकि मै कूड-कूड नहीं सीख पाया हूँ परन्तु उसका भावनात्मक अर्थ मैं समझने लगा हूँ | मैं सोचता हूँ जब आदमी अपनी जगह बदलने वाला हो तो उसे उसके पीछे साथियों को उसकी कमियों के बारे में अवगत करा देना चाहिए हालाँकि अधिकतर आपके विचार इसके विपरीत होंगे | परन्तु जाते समय यदि उसकी बुराई की जाय तो शायद वे अगले पडाव पर अच्छा बनने या गलतियों को न सुधारने की कोशिश करे या जब आप उन्हें छोड रहे हो तो भी वही formula लागु होता है |
मैं इन लोहे और पाइपों पर बने इस अद्भुत सदन के मालिकों से कहना चाहूँगा की मेहरबानी करके अपने स्वभाव को थोडा बदले | मानता हूँ कोंट्रेक्टर लोगों के पास job security नामक वस्तु का अभाव है प्रर इसका यह आशय तो नहीं की उनकी मानव श्रेणी में गणना न हो | पाखाने से खाने तक का उनका नजरिया अलग बनाया हुआ है | कुछ को तो सर पर छत भी नसीब नहीं है | वो बेचारे फटे कम्बल में लोहे की मशीनो के ढाचे के बीच में पड़े रहते है | उनकी कोई सुध नहीं ले रहा | जो भी है मेरा यही कहना है की हो सके तो इन मानवों से मानवता का व्यवहार शुरू कीजिए | वो भी आपके ही हिंदुस्तान के भाई बहिन हैं |
अभी मेरा यहाँ से जाने का समय हो चुका है | इन दिनों में आत्म चिंतन का मैंने बहुत महत्वपूरण व अद्भुत अध्याय पढा है | यही सब कुछ है जो मैंने इन दिनों में प्राप्त किया है | आशा करता हूँ की मेरी उँगलियों में हुए दर्द की आप कद्र करेंगे और थोडा सा मानवता का व्यवहार करेंगे |
ok............then c u in mumbai    

Goal setting is plan focus.


Goal setting is not just deciding what you want and trying to reach it.
Goal Setting is:
  • A focused plan based on proven methods to achieve desired results.
  • A predetermined set of rules and regulations.
  • Every single one of us has set goals and failed. Why? Because Goal Setting is a science and must be learned.
I can see the question in your eyes: "A science?"
Close your eyes and imagine you've just won first prize in a contest...a small aircraft! Your very own plane to take you and your loved ones to destinations yet to be discovered! Can you imagine your excitement? Can you see the luxurious carpeting, the fresh paint, the cockpit? Can you imagine your excitement?? You can fly wherever you want to go! Any city, any state, any country! You can explore the world now and see everything with your own eyes.
You walk around your plane and think "I can't wait to fly my plane!", "I want to go now!", "I'm the owner, right?", and then "How in the world do you fly this thing? There are so many buttons! Where are the instructions?"
Even if you are able to start it, how in the world you're going to fly it and land safely in the country of your dreams if you have no training? You are not that free after all... First, you have to learn how to operate your plane