जैसे-जैसे मैं अपने बुढ़ापे के द्वार की ओर यात्रा कर रहा हूँ, मैं उस रास्ते पर विचार करता हूं जिसमें मैं भाग रहा हूं। प्रत्येक कदम के साथ अर्जित ज्ञान व जागती स्मृतियाँ के साथ, मैं चिंतन और मनन करता हूँ।
जिस सड़क पर मैं चलता हूं, उसमें परीक्षणों और प्राप्त विजयों द्वारा चिह्नित तीव्र और हल्के मोड़ हैं। फिर भी, मेरे दिल में एक साहस है जो बुद्धि और अनुभव से ये सब पार कर जाता है।
मैं जो भी कदम उठाता हूँ, मेरे चेहरे पर एक शिकन सी आ जाती है, एक कहानी जो बहुत गहरी है, मेरे वर्षों की एक कहानी। मेरी ये पंक्तियाँ जीवन के हँसी, दुःख, प्यार और अनगिनत आँसुओं की जीवंत आलिंगन का प्रमाण हैं।
ये समय के प्रतीक बाल जो कभी मेरे युवावस्था को सुशोभित करते थे, अब धूमिल और कम हो रहे हैं।
लेकिन मेरे मन में अभी भी आग बरकरार है, एक मजबूत आत्मा, एक ज्वाला जो उत्कृष्ट रूप से जलती है।
हर गुजरते साल के साथ, मैं बुद्धिमान होता जाता हूँ,
जीवन जो सबक सिखाता है उसे अपनाता जा रहा हूँ।
शरीर धीरे-धीरे समझौता कर रहा है, पर आत्मा परमात्मा मिलन के लिए उतावला होता जा रहा हूँ।
तो अब, मुझे अपने बुढ़ापे के दरवाजे की थोड़ी यात्रा करने दो, मेरे संगी साथियों के साथ थोड़ी बातचीत करने दो। क्योंकि जैसे-जैसे मैं आगे की यात्रा करूँगा, उसे बताने के लिए मैं किसे खोजता रहूँगा?
*जिंदगी अटपटी निकली, तो सार भी अटपटा लिखा गया ;)
1 टिप्पणी:
सुनील जी, आपके अद्भुत विचार अवश्य शेयर करते रहे, जगतगुरु श्रीकृष्ण जी आपकी विचार शक्ति को सदा प्रकाशमान करते रहे।
आपका मित्र पुनीत शर्मा
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