शनिवार

चिंता करने की आवश्यकता नहीं,

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एक दिन श्री कृष्ण और अर्जुन बातें करते हुए महल से दूर निकल गए।

मार्ग में उन्होंने एक गरीब ब्राह्मण को भिक्षा मांगते हुए देखा। अर्जुन को उस ब्राह्मण पर दया आ गयी, अतः उन्होंने उसे सोने के सिक्कों से भरी एक थैली देदी। ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ और वो सिक्के लेकर घर चल दिया।

जंगल के रास्ते में उसे एक चोर मिल गया, जिसने उसके सिक्के लूट लिए।

ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ। मेरा भाग्य ही खराब है, यह कहता हुआ और भाग्य को कोसता हुआ ब्राह्मण पुनः भिक्षा मांगने आ गया। अगले दिन जब अर्जुन और कृष्ण उधर से गुजरे तो उन्होंने फिर से उस ब्राह्मण को भीख मांगते देखा।

वो उसके पास पहुंचे तो उन्हें चोरी की बात पता चली। अर्जुन ने फिर से उसपर दया करते हुए उसे एक बड़ा सा हीरा दे दिया।

ब्राह्मण घर पहुँचा. उसने हीरा एक पुराने घड़े में रख दिया जिसका प्रयोग नहीं होता था और सोने चला गया। अगले दिन ब्राह्मण के उठने के पहले उसकी पत्नी पानी भरने नदी की ओर गयी।

पानी भर के लाते समय उसके हाथ से घड़ा फिसल कर गिरा और टूट गया. ब्राह्मण की पत्नी को याद आया कि घर में एक पुराना घडा है जिसका प्रयोग नहीं होता। उसने सोचा क्यों न उसी में पानी भर लाया जाये।

वो घर आई, घड़ा उठाया और वापस पानी भरने चल दी। नदी में जब उसने घड़ा डुबाया तो हीरा घड़े से निकलकर पानी में बह गया।

जब वो घर आई तो उसने देखा ब्राह्मण पूरे घर में कुछ खोजता फिर रहा है। ब्राह्मण ने जब अपनी पत्नी के हाथ में उस घड़े को देखा और घड़े में सिर्फ पानी भरा देखा तो वह समझ गया क्या हुआ होगा।

हताश, निराश ब्राह्मण पुनः अगले दिन भीख मांगने उसी स्थान पर पहुँच गया। संयोग की बात, अर्जुन और कृष्ण कहीं से लौट रहे थे, उनका ध्यान फिर उसी ब्राह्मण की तरफ गया।

उत्सुकतावश वो उसके पास पहंचे और उससे पूछा कि अब आपको भीख मांगने की क्या आवश्यकता पड़ गयी। ब्राह्मण ने फिर अपनी रामकहानी सुनाई।

उसकी दुर्भाग्यपूर्ण कहानी सुनकर अर्जुन श्री कृष्ण से बोले – इस आदमी की किस्मत में सुख-समृद्धि लिखी ही नहीं हैं, मुझे नहीं लगता अब मैं और इसकी मदद कर पाउँगा।

श्री कृष्ण कुछ बोले नहीं, बस उन्होंने उस ब्राह्मण को दो पैसे दिए। ब्राह्मण ने वो पैसे लिए और घर चला गया।

ब्राह्मण के जाने के बाद अर्जुन बोले – जब मेरे इतना सोना, हीरा देने के बाद भी उसका भला नहीं हुआ तो आपके दिए 2 पैसे से उसका क्या भला होगा। श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले – देखते हैं क्या होता है !

ब्राह्मण अपने भाग्य को कोसता हुआ घर जा रहा था. रास्ते में उसने एक मछुआरे को देखा जोकि एक ताजी बड़ी मछली पकड़कर ले जा रहा था। मछली उसके जाल में तड़फड़ा रही थी और छूटने के लिए प्रयास कर रही थी।

ब्राह्मण को उस मछली की स्थिति देखकर दया आ गयी। उसने सोचा – इस 2 पैसे में मेरा क्या भला होगा, क्यों न इससे इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाएँ।

ब्राह्मण ने वह मछली खरीद ली और उसे पुनः नदी में डालने चल पड़ा।

नदी में फेकने से पहले उसने देखा कि मछली के मुंह में कोई बड़ी वस्तु अटकी हुई थी जिसकी वजह से वो सांस नहीं ले पा रही थी। जब उसने मछली का मुंह खोलकर वह बाहर निकाला तो वही बड़ा हीरा निकला, जो उसे अर्जुन ने दिया था।

ब्राह्मण हीरा पाकर ख़ुशी से चिल्ला पड़ा – देखो देखो ! मिला गया मिला गया, आखिर मुझे मिल ही गया।

उससे थोड़ी ही दूर पर वही चोर जा रहा था, जिसने ब्राह्मण के सिक्के चुराए थे। उसने जब यह आवाज़ सुनी और ब्राह्मण को नदी की तरफ से आते हुए देखा तो चोर डर गया।

चोर ने उसे देखकर पहचान लिया था कि यह वही व्यक्ति है, जिसके सिक्के उसने चुराए थे। ब्राह्मण के चिल्लाने की आवाज सुनकर उसे लगा कि ब्राह्मण ने उसे पहचान लिया है और अब वो उसे पकड़वाकर सजा दिलवाएगा।

चोर ने ब्राह्मण के पैर पकड़ लिए और बोला – अरे भाई ! मुझे माफ़ कर दो, अपने सिक्के ले लो पर मुझे सजा मत दिलवाना, मुझसे बड़ी गलती हो गयी।

ब्राह्मण क्या बोलता पर वो सारा माजरा समझ गया। उसने चोर को माफ़ किया, अपने सिक्के लिए और ख़ुशी से मगन अपने घर चला गया।

अगले दिन ब्राह्मण सीधे अर्जुन के पास पहुंचा और उन्हें सारी बात बताई। ब्राह्मण ने अर्जुन को धन्यवाद दिया और चला गया।

उसके जाने के बाद अर्जुन श्री कृष्ण से बोले – हे प्रभु ! यह क्या चमत्कार है ? मेरे सिक्के और हीरे तो उसकी सहायता नहीं कर पाए पर आपके दिए दो पैसों ने कमाल कर दिया। इसका कारण जरा स्पष्ट करें।

श्री कृष्ण बोले – अर्जुन यह चमत्कार नहीं, सृष्टि का नियम है जिसपर दुनिया काम करती है। जब उसके पास ढेर सारे सिक्के और हीरे थे तो वह सिर्फ अपने बारे में, अपनी जरूरतों के बारे में ही सोच रहा था।

लेकिन जब उसके पास 2 पैसे थे तो भी उसने उस मछली के भले के लिए खर्च कर दिए। इसीलिए फिर उस ब्राह्मण के जरूरतों की जिम्मेदारी मैंने ले ली।

हे अर्जुन ! सत्य तो यह है कि जब तुम किसी दूसरे व्यक्ति के दुःख दर्द से द्रवित होते हो या अपने सिवा किसी और की जरूरतों की चिंता करते हो, उन लोगों के दुःख दूर करने और उनकी जरुरत पूरा करने का प्रयास करते हो, तो तुम भगवान के कार्य में हाथ बंटा रहे होते हो. फिर तुमको अपनी चिंता करने की आवश्यकता नहीं, तुम्हारी जरुरत भगवान खुद पूरी करेंगे।
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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

जय श्रीकृष्ण