मम्मी पापा को देखते हुए राघव धीरे धीरे बड़ा हो रहा था | उसकी दुनिया उसके मकान, उसकी लिफ्ट और सामने वाले बगीचे में लगे कुछ झूलों तक ही सीमीत थी | वो न किसी गॅाव को जानता था न ही उसमें रहने वाले उसके दादी-दादा, ताऊ-ताई, चाचा- चाची या भाई बहिन को | वो जानता था तो बस उस भीड़ भरी मुंबई के उस छोटे से बगीचे में खेलने वाले छोटे छोटे बच्चों को | शायद उसे तो पता ही नहीं होगा की इस दुनिया से बहार भी कोई दुनिया है |
जब राघव की मम्मी उसके पापा के साथ रहने आई तब वह बड़ी खुश थी कि चलो गॉव की दिक्कतों व प्राणियों से छुटकारा तो मिला | और पता नहीं क्या क्या सोच कर अपने पति के साथ मुंबई में ४×६ के मकान में रहने लगी | समय के साथ साथ राघव की मम्मी को जीवन नीरस लगने लगा क्यों कि करने को तो कुछ था ही नही | उस ४×६ के कमरे के सफाई की और फिर क्या? जो वह करना चाहती थी वह वहाँ था नहीं और जो था वो वह करना नहीं चाहती थी |
चलो जो भी था धीरे धीरे एक दिन राघव की उपस्थिति का पता चला | पापा मम्मी बड़े उतावले हो गए कि कब बाहर निकलेगा? कैसे क्या कब होगा आदि आदि | बस अभी तो सब झिलमिल लग रहा था | जब वो ultrasound करवाने गए तो दोनों बड़े कुछ थे कि आज कम से कम टेलिविज़न में तो देखेगे | डॉ साह्ब की मेहरबानी से पापा अंदर तो चले तो गए पर सौस रोक कर बनाई गयी उनकी mobmovie की कोशिश नाकाम रही |
रही सही कसर डॉ साहब में यह कह कर निकल दी कि एक और ultrasound होगा | कारण पूछा तो बोले की कुछ नहीं बस थोडा संदेह है थोड़े दिन बाद थोडा ठीक हो जायेगा तब ठीक से देखना है कि बच्चा तंदुरुस्त है या नहीं |मन में नाना प्रकार की शंकयो के साथ मम्मी पापा अगली बार आने का appointment ले कर बार बाहर निकल गए |
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