शनिवार

मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी है.

पता नही कब से मज़बूरी का

नाम महात्मा गाँधी है

हर मुश्किल में हर बेबस की

ढाल महात्मा गाँधी है.



अक्सर इस जुमले को सुनते-

सुनते मन में आता है -

गाँधी जी का मज़बूरी से

ऐसा भी क्या नाता है?



ऑफिस की दीवारों पर

गाँधी की फोटो टंगी-टंगी

बाबुओं का घूस मांगना

देखा करती घडी- घडी.



चौराहों- मैदानों में

बापू की प्रतिमा खड़ी- खड़ी

नेताओं के झूठे वादे

सुनती विवश हो घडी-घडी .



गाँधी का चरखा, गाँधी की

खड़ी आज अतीत हुई,

गाँधी के घर में ही देखो

गोडसे की जीत हुई.



गाँधी जी की हिन्दुस्तानी

पड़ी आज भी कोने में,

गाँधी के प्यारे गांवों में

कमी न आयी रोने में.



नोटों पर छप, छुपकर गाँधी

सब कुछ देखा करते हैं

हर कुकर्म का, अपराधों का

मन में लेखा करते हैं.



गाँधी भारत का बापू था,

इंडिया में उसका काम नही,

मज़बूरी के सिवा यहाँ होठों पर

गाँधी नाम नही.



इतना कुछ गुन-कह-सुन मैंने

बात गांठ यह बंधी है-

गाँधी होने की मज़बूरी का ही

नाम महात्मा गाँधी है.

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